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माउंटेन गर्ल नैना सिंह धाकड़ अविश्वसनीय

कोन हे माउंटेन गर्ल नैना सिंह धाकड़ आइए जानते हे एक नजर में……. जिसने दुनिया को सोचने पर मजबूर कर दिया

माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली ‘माउंटेन गर्ल’ के नाम से प्रसिद्ध ‘सुश्री नैना सिंह धाकड़ जी’ के जज़्बे को जान आप भी हो जाएंगे हैरान|

किसी भी चीज़ को अगर पूरी शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात आपको उससे मिलाने में लग जाती है। यह बातें बस्तर गर्ल के नाम से मशहूर सुश्री नैना सिंह धाकड़ जी के ऊपर एकदम सटीक बैठती हैं। नैना सिंह ने अभी हाल ही में एवरेस्ट फतह कर इतिहास रच दिया है। उन्होंने पूरी दुनिया में बस्तर और भारत का परचम लहरा दिया है। यह उपलब्धि हासिल करने वाली नैना प्रदेश की पहली महिला बन गई हैं। दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर भारत का तिरंगा लहराने वाली नैना सिंह ने बीमार होने के बाद भी हार नहीं मानी और एवरेस्ट फतह कर समाज को बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का संदेश दिया है। सुश्री नैना सिंह धाकड़ जी के लिए इतनी छोटी सी उम्र में एवरेस्ट की चढ़ाई चढ़ना और उसे फतह करना इतना आसान नहीं था। इस कार्य को करने में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। आइए जानते हैं उनके संघर्ष और सफलता की प्रेरणादायी कहानी।

बचपन से ही पहाड़ों की चोटी थी पसंद

छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की रहने वाली सुश्री नैना सिंह धाकड़ जी ने बस्तर (Bastar) जैसे नक्सलग्रस्त और आदिवासी बाहुल्य इलाके में साहस और दृढ़ संकल्प की मिसाल कायम की है। सुश्री नैना सिंह धाकड़ जी को बचपन से ही पहाड़ों की चोटियां आकर्षित करती थीं। जब वो थोड़ी बड़ी हुई तो कराटे सीखने लगी। उनके पिता पुलिस में थे। नैना सिंह ने तीन बार कराटे में नेशनल भी खेला है। जिसके बाद उन्हें पर्वतारोहण से लगाव हो गया। सुश्री नैना सिंह धाकड़ जी का बचपन से ही सपना एवरेस्ट फतह करने का था। जिसके लिए उन्होंने हिमाचल प्रदेश में लगे ट्रेनिंग-कैम्प में हिस्सा लिया।

हिमाचल प्रदेश में लगा ट्रेनिंग कैम्प बन गया टर्निंग पाइंट

हिमाचल प्रदेश में लगे ट्रेनिंग-कैम्प के दौरान सुश्री नैना सिंह धाकड़ जी ने देश के नामी पर्वतारोहियों से माउंटेनीयरिंग, रॉक- क्लाइम्बिंग और रिवर-क्रॉसिंग के बारे में जाना। यह नैना के लिए टर्निंग प्वाइंट था। उसके बाद पर्वतारोहण का जो जुनून पैदा हुआ तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पढ़ाई खत्म होने के बाद 2011 में नैना जॉब के सिलसिले में जमशेदपुर गई हुई थीं। संयोग से वहां उनकी मुलाकात माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली देश की पहली महिला पर्वतारोही बछेंद्री पाल से हुई। बस्तर (Bastar) का नाम सुनते ही बछेंद्री उनसे प्रभावित हुईं और उन्हें एक महीने की ट्रेनिंग पर चलने को कहा। नैना ने फौरन हां कर दी। बस फिर क्या था देश के अलग-अलग राज्यों से 11 महिलाओं के साथ उन्हें एक महीने के लिए भूटान ले जाया गया। इस यात्रा को लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में जगह मिली थी।

पर्वतारोहण का कोर्स पूरा कर एवरेस्ट की ओर भरी उड़ान

नैना ने वर्ष 2012 में दार्जिलिंग स्थित हिमालय पर्वतारोहण संस्थान से पर्वतारोहण का कोर्स किया। साथ ही एएमसी, एचएमआई, एनआईएम, बेसिक एडवांस रॉकक्लाइम्बिंग कोर्स भी पूरा किया। कोर्स पूरा करने के बाद दार्जिलिंग की पहाड़ी की चढ़ाई पूरी करने में सफल हुईं। नैना के शानदार प्रदर्शन को देखते उन्हें काफी सराहा गया। जिसके बाद नैना सिंह ने एवरेस्ट फतह करने की ओर उड़ान भरी।

बीमारी के बाद भी नहीं मानी हार, एवरेस्ट फतेह कर नाम किया रौशन

जान जोखिम में डालकर बस्तर (Bastar) की सुश्री नैना सिंह धाकड़ जी ने एवरेस्ट की चोटी फतह की है। वह दुनिया की इस सबसे ऊंची चोटी पर फतह करने वाली राज्य की पहली महिला पर्वतारोही बन गई हैं। लेकिन इस बीच नैना धाकड़ माउंट एवरेस्ट फतह करने के प्रयास में अत्यधिक थकान के कारण बीमार हो गईं। उनके साथ के अन्य साथियों ने हार मान ली। लेकिन बीमार होने के बाद भी उन्होंने एवरेस्ट की ओर चढ़ाई करना जारी रखा। से लगातार संपर्क की कोशिश करने लगी। बड़ी मुश्किल से लगभग दोपहर दो एक जून की सुबह नैना सिंह ने एवरेस्ट को फतह कर लिया। लेकिन वो इतनी बीमार हो गई थीं कि उनकी नीचे उतर पाना संभव नहीं हो पाया था। जिसके बाद उनकी टीम के अन्य सदस्यों ने उनकी मदद की। नैना सिंह ने भारत का झंड़ा एवरेस्ट की चोटी पर लहरा कर हर ओर भारत का नाम रौशन कर दिया।

छतीसगढ़ के सीएम सहित कई लोगों ने की तारीफ
सुश्री नैना सिंह धाकड़ जी के इस अद्भुत और सराहनीय कार्य की प्रशंसा छतिसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश सिंग बघेल ने भी की। उन्होंने कहा कि नैना ने अपने दृढ़ संकल्प, इच्छाशक्ति तथा अदम्य साहस से यह कर दिखाया है। नैना सिह के इस साहसपूर्ण कार्य की भारत सहित विदेशों में भी प्रशंसा हो रही हैं। यही नहीं नैना सिंह…

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