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आज प्रियंका की साख दांव पर: दशकों से संभाल कर रखा तुरुप का पत्ता क्या कांग्रेस के लिए रहा लकी; नतीजों पर टिकी है प्रियंका की राजनीतिक पारी

24 मिनट पहलेलेखक: देवांशु तिवारी

2022 यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 30 साल बाद प्रियंका की अगुवाई में सभी 403 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। लड़की हूं,लड़ सकती हूं के नारे के साथ प्रियंका ने 40% महिलाओं को ट‍िकट द‍िए। हालांकि, यूपी के शुरुआती रुझानों में कांग्रेस को 403 सीटों में से मात्र 4 सीटों पर ही कामयाबी मिलती नजर आ रही है।

फिलहाल, प्रियंका की चुनी गईं सभी 142 महिला कैंडिडेट्स शुरुआती रुझानों में पीछे चल रही हैं। अगले 2 से 3 घंटे में यह साफ हो जाएगा कि कांग्रेस की प्रियंका को आगे लाने की स्ट्रेटजी कितनी सफल रही। हालांकि, उससे पहले यह जानना जरूरी है कि लगभग दो दशकों तक जिस तुरुप के पत्ते को कांग्रेस संभालकर रखी हुई थी, उसे अचानक क्यों सियासी अखाड़े में उतरना पड़ा।

ये कहानी शुरू होती है 2004 के लोकसभा चुनाव से…

साल 2004: पॉलिटिक्स में पहली बार आया प्रियंका का नामप्रियंका की पढ़ाई दिल्ली के मॉडर्न स्कूल में हुई। फिर दिल्ली के जेएमसी कॉलेज से साइकोलॉजी पढ़ीं। 1997 में उनकी शादी व्यापारी रॉबर्ट वाड्रा से हो गई। शादी के 7 साल बाद साल 2004 में प्रियंका का नाम पहली बार पॉलिटिक्स के गलियारों में गूंजा। वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई ने अपनी किताब 24 अकबर रोड में इस बारे में तफसील से बताया है।

साल 2004 में मां सोनिया के लिए प्रचार करती प्रियंका गांधी।

साल 2004 में मां सोनिया के लिए प्रचार करती प्रियंका गांधी।

किदवई ने लिखा, “साल 2004 था। देश में लोकसभा चुनाव थे। सोनिया जगह-जगह जाकर रैलियां कर रही थीं। तब प्रियंका भी पहली बार मां के लिए प्रचार करने कई मंचों पर गईं। प्रियंका का जुझारूपन देखकर राजनीतिक जानकार कहने लगे थे कि वो दादी इंदिरा की तरह देश की बड़ी नेता बनेंगी।”

किताब में यह भी लिखा है कि इसी चुनाव के शुरुआती दौर में कांग्रेस की हालत पतली नजर आ रही थी। तब प्रियंका के कहने पर ही एक ऐड एजेंसी रखी गई थी। इसका फायदा कांग्रेस को बाद में मिला।

साल 2009: अमेठी-रायबरेली में चुनाव प्रचार किया तो महिलाओं ने कहा – चौखट पर फिर आ गईं इंदिरा

अमेठी में राहुल के साथ कार चलाकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंची प्रियंका। तस्वीर 2009 की है।

अमेठी में राहुल के साथ कार चलाकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंची प्रियंका। तस्वीर 2009 की है।

लोकसभा चुनाव में रायबरेली और अमेठी में प्रचार के लिए कांग्रेस ने प्रियंका को जिम्मा दे दिया था। इस चुनाव में प्रियंका गांव-गांव घूमीं। सड़क पर पैदल रैलियां भी की। 20 अप्रैल को प्रचार के लिए प्रियंका जब गौरीगंज के एक गांव में पहुंची तो महिलाओं ने उन्हें घेर लिया। एक महिला ने उनके गाल पर हाथ फेरते हुए कहा, “ लागत है गांव मा इंदिरा आ गईं।” ये वो दौर था जब जनता प्रियंका के चेहरे मोहरे में उनकी दादी इंदिरा की झलक देखने लगे थे।

साल 2014: प्रियंका का भाषण बन गया पॉलिटिकल मुद्दा2014 के लोकसभा चुनाव में जब सोनिया और राहुल देश के बाकी हिस्सों में प्रचार कर रहे थे। प्रियंका, अमेठी और रायबरेली संभाल रही थी। इस दौरान उन्होंने 5 मई 2014 में नरेंद्र मोदी पर एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा, “ नरेंद्र मोदी ने अमेठी की धरती पर मेरे शहीद पिता का अपमान किया है, यहां की जनता इन्हें कभी माफ नहीं करेगी। इनकी नीच राजनीति का जवाब मेरे बूथ कार्यकर्ता देंगे।”

अमेठी में स्मृति ईरानी के लिए प्रचार करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि जब राजीव गांधी कांग्रेस महासचिव थे तो उन्होंने हवाईअड्डे पर आंध्र प्रदेश के तब के सीएम टी अंजैया को सरेआम गाली दी थी। उनका अपमान किया था। अंजैया 1980 से 1982 के बीच आंध्र के सीएम थे। इस बयान पर प्रियंका ने 5 मई 2014 को जवाब दिया था।

अमेठी में स्मृति ईरानी के लिए प्रचार करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि जब राजीव गांधी कांग्रेस महासचिव थे तो उन्होंने हवाईअड्डे पर आंध्र प्रदेश के तब के सीएम टी अंजैया को सरेआम गाली दी थी। उनका अपमान किया था। अंजैया 1980 से 1982 के बीच आंध्र के सीएम थे। इस बयान पर प्रियंका ने 5 मई 2014 को जवाब दिया था।

प्रियंका के इस बयान में कहे गए नीच शब्द को नरेंद्र मोदी ने पकड़ लिया। उसे अपनी जाति से जोड़ दिया। मामला इतना बढ़ गया कि बिहार में प्रियंका के खिलाफ पुलिस कम्प्लेन दर्ज की गई। इस घटना के बाद राजनीतिक पंडित कहने लगे थे कि कांग्रेस जल्द ही प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतार सकती है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

इस समय तक प्रियंका को सक्रिय राजनीति में आने के 3 बड़े मौके मिले। हालांकि, हर बार राजनीति के बारे में पूछने पर प्रियंका यही कहतीं कि 15 साल से कह रही हूं कि राजनीति में कभी नहीं आउंगी। मैं तो अपने बच्चों के साथ ही खुश हूं।

साल 2017: विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर ने कहा प्रियंका को दी जाए कांग्रेस की कमान… पार्टी नहीं मानी11 मई 2016, दिन बुधवार, कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बड़ा सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी को कांग्रेस की अगुआई दी जानी चाहिए। प्रियंका गांधी के यूपी में इंचार्ज बनने से कांग्रेस की स्थिति सुधर सकती है।

2017 यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका को आगे लाने की सलाह नहीं मानी गई तो इससे नाराज प्रशांत ने कांग्रेस से दूरियां बनाना शुरू कर दिया था।

2017 यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका को आगे लाने की सलाह नहीं मानी गई तो इससे नाराज प्रशांत ने कांग्रेस से दूरियां बनाना शुरू कर दिया था।

प्रशांत के इस सुझाव को कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का समर्थन मिला। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत के इस सुझाव को कांग्रेस ने नकार दिया। सपा-कांग्रेस का गठबंधन हुआ। इस दौरान राहुल और अखिलेश ही मंच पर दिखाई दिए। नतीजा आया तो कांग्रेस को 114 सीटों में केवल सात सीटों पर जीत मिली थी, वहीं सपा को 311 सीटों में 47 सीटों पर जीत मिली।

अब…?

अभी कहानी खत्म नहीं हुई है, दरअसल, असली कहानी तो अब शुरू होती है…

साल 2019 : पवेलियन से निकलकर राजनीति की पिच पर पहली बार उतरी प्रियंका23 जनवरी 2019, दोपहर का वक्त, कांग्रेस की तरफ से एक प्रेस रिलीज आई। इसके तीसरे पैराग्राफ में लिखा था कि प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव चुना गया है। उन्हें पूर्वी यूपी का प्रभार दिया गया है। यह पहला मौका था जब प्रियंका ने कोई राजनीतिक पद संभाला था।

अशोक गहलोत की तरफ से जनवरी 2019 में जारी की गई इसी प्रेस रिलीज में ये लिखा था कि प्रियंका कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बनाई गई हैं।

अशोक गहलोत की तरफ से जनवरी 2019 में जारी की गई इसी प्रेस रिलीज में ये लिखा था कि प्रियंका कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बनाई गई हैं।

2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई लेकिन राजनीतिक तौर पर प्रियंका का मजबूत चेहरा पहली बार लोगों के सामने आया। तभी से कांग्रेस ने यह तय कर लिया था कि 2022 विधानसभा चुनाव में प्रियंका को यूपी की जिम्मेदारी दी जाएगी।

साल 2022: ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे से प्रियंका ने मह‍िलाओं और युवाओं को साधा…सूबे में चुनावी प्रचार के दौरान इस बार प्रियंका ने पूरी ताकत झोंकते हुए महिला वोटर्स पर फोकस किया था। उन्होंने 40% म‍ह‍ि‍ला कैंडिडेट्स को ट‍िकट द‍िए। विधानसभा चुनाव में प्रियंका ने कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत के लिए 209 रैलियां और रोड शो किए। इस दौरान उन्होंने लखीमपुर हिंसा, हाथरस कांड, रोजगार और महिला सुरक्षा पर अलग-अलग मंचों से योगी सरकार को घेरा।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया ने प्रियंका को यूपी की कमान दिए जाने को मास्टरस्ट्रोक बताया। पुनिया ने कहा कि ये फैसला कांग्रेस में नई जान फूंक देगा।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया ने प्रियंका को यूपी की कमान दिए जाने को मास्टरस्ट्रोक बताया। पुनिया ने कहा कि ये फैसला कांग्रेस में नई जान फूंक देगा।

वरिष्ठ पत्रकार विवेक गुप्ता बताते हैं, ” इस चुनाव में कैंडिडेट्स के सेलेक्शन से लेकर घोषणापत्र तैयार करने में प्रियंका की लीडरशिप देखने को मिली। इसमें महिलाओं को फोकस करने वाले मुद्दे रखे गए। मैनिफेस्टो में आशा-आंगनबाड़ी वर्कर्स को 10,000 रुपए मानदेय, वृद्धा-विधवा पेंशन 1,000 रुपये,सरकारी नौकरियों में 40% लड़कियों को आरक्षण देने की बातें थी। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के मेनिफेस्टो पर गौर करेंगे तो आपको इतना डीटेल्ड घोषणापत्र नहीं मिलेगा।”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, सचिन पायलट ने भी यूपी में आकर रैलियां की। अकेले प्रियंका ने 42 रोड शो किए। आखिरी चरण के चुनाव प्रचार तक उन्होंने कुल 167 रैलियां और जनसभाएं की।

प्रियंका के आने से पहले विधानसभा चुनावों में क्या थी कांग्रेस की हालतयूपी में कांग्रेस करीब ढाई दशक से अपनी खोई हुई जमीन तलाश रही है। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थीं। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में कांग्रेस सूबे में सिर्फ दो लोकसभा सीटों तक ही सीमित रह गई।

2019 लोकसभा में प्रचार के दौरान रायबरेली में संपेरों से मिलती सोनिया गांधी।

2019 लोकसभा में प्रचार के दौरान रायबरेली में संपेरों से मिलती सोनिया गांधी।

2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन किया और 114 सीटों पर चुनाव लड़ा। इनमें उसे केवल 7 सीटों पर कामयाबी मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल अपना गढ़ रायबरेली ही बचा पाई थी। इस दौरान प्रियंका रायबरेली में प्रचार कर रही थीं।

प्रियंका के राजनीतिक सफर पर कितना असर पड़ेगावरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक जानकार कुमार भवेश चंद्र कहते हैं, “ प्रियंका ने चुनाव से पहले जो 40% महिलाओं को टिकट देने का एक्सपेरिमेंट किया था। वह कांग्रेस के हक में जाता नहीं दिख रहा है। चुनाव में जिन लोगों का ध्येय था योगी को हटाना, उन्होंने वोट बंटने के डर से कांग्रेस की जगह सपा को वोट दिया। क्योंकि प्रियंका की तुलना में अखिलेश भाजपा के खिलाफ ज्यादा ताकत से लड़ते नजर आए। इसका असर कांग्रेस के वोट ग्राफ पर पड़ा। ”

भवेश आगे कहते हैं, “दूसरे चश्मे से देखें तो इन चुनावों ने कांग्रेस को प्रियंका की राजनीतिक परिपक्वता भी दिखाई है। खुद प्रियंका की राजनीतिक समझ पहले से ज्यादा बढ़ी है। इसलिए कांग्रेस आने वाले चुनावों में भी प्रियंका का सहयोग लेती रहेगी। इस प्रदर्शन से उनके राजनीतिक करियर पर बहुत फर्क नहीं पडे़गा।”

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